Tuesday 4 September 2012

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गीता के चोथे अध्याय में स्पस्ट लिखा है चतुर्वर्न्यम माया सृष्टं गुणकर्म विभाग्सः '' चारो वर्णों को भगवान् ने बनाया है , जीवो के गुण और कर्मो का विचार करते हुवे | केवल भगवान् ही किसी के गुण कर्मो पर विचार कर सकते है, गीता में कहा भी कर्मण्ये वाधिकारस्ते '' जीव का अधिकार केवल कर्म करने में है वोकेवल कर्म कर सकता है फल निश्चित नहीं कर सकता है , ब्राह्मणत्व आदि आदि तो फल ही है इसको तो केवल भगवान् ही दे सकते है कोई व्यक्ति किसी को ब्राह्मण आदि नहीं बना सकता है अन्यथा वो स्वयं को भगवान् होने का दावा कर रहा है जो व्यवहार जगत में शास्त्र विरुद्ध है| गीता में भगवान् कहते है कर्म की गतिबड़ी गहन है उसको समझने में बड़े बड़े विद्वान् भी मोहित हो जाते है कर्मणागहनों गतिही, कवयोअपि अत्र मोहिता '' अतः जन्म से ही किसी की जाति निश्चित होती है '' जाति'' शब्द ही जन्म से सम्बंदित है || जय जय पार्वतीनाथ ||

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